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सोमवार, 27 सितंबर 2021

" एक मैं एक तुम, मिल के हम हो गये " देवाराम राम भाम्बू की काव्य रचना

आज आपके सामने पेश है  साहित्य रत्न और काव्यश्री सम्मान प्राप्त देवाराम राम भाम्बू की अभ्युदय  हिन्दी मासिक पत्रिका  में 2021 में  प्रकाशित काव्य रचना  एक मैं एक तुम, मिल के हम हो गये।।



एक मैं एक तुम, मिल के हम हो गये।।


दबी प्रीत उर में
कुछ जल मिला
कुछ खाद
अंकुरित हो गई
हुआ प्रीत का सिंचन
इशारों में बात हुई
खामोश दिल की तरंग
अधरों से पार हुईं
समर्पण कर दिया हमने
रगो में समाये तुम
यादो को भाये तुम
और परिणाम !
एक मैं, एक तुम, मिलके हम हो गये
मुझसे मिल के दिलो जां सनम हो गये।
एक मैं एक तुम मिल के हम हो गये।


रचनाकार :- 

देवाराम भॉमू                   +919571524500
जाखली, मकराना
जिला नागौर
राजस्थान

कविता आपको कैसी लगी कॉमेंट करके जरूर बताना


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बहुमीखी प्रतिभा के धनी, काव्यश्री,साहित्य रत्न देवाराम भाॅमू समाज के गौरव

बहुमीखी प्रतिभा के धनी, काव्यश्री देवाराम भाॅमू समाज के गौरव

पीपल के पेड़ से पद्मश्री पुरस्कार तक प्रकृति प्रेमी हिमताराम जी भाम्बू, हमारे भाम्बू परिवार व देश के गर्व

 

 6 फ़ीट ऊंचा पालक का पौधा मालीगांव



फाल्गुन मास,होली और धमाल,मोज़ मस्ती कहाँ गए वो दिन?सब कुछ बदल गया

 आशाओं के दीप काव्यमंजरी में प्रकाशित काव्य रचना देवाराम राम भाम्बू

भाम्बू गौत्र का इतिहास


मेरे बारे में ..


मन बोला "काव्यश्री" सम्मान प्राप्त देवाराम राम भाम्बू की "स्पन्दन काव्य संग्रह" में प्रकाशित काव्य रचना

आज आपके सामने पेश है  साहित्य रत्न और काव्यश्री सम्मान प्राप्त देवाराम राम भाम्बू की   स्पन्दन काव्य संग्रह   में  प्रकाशित काव्य रचना 

मन बोला

विटप की छाह गहरी,

धूप ज्यादा, 
चलना काम कठिन, 
यहाँ प्याऊ भी हैं, 
प्यास से कंठ गये सूख ।
 यहाँ कुछ आराम करे,
 प्रस्वेद पोंछे,
 हवा खायें,
जल पियें, 
तब तक ठंड होगी,
ओ! मेरे मन
उतावला क्यों? 
चले जायेंगे।
यहाँ कोई हमराही होगा,
 साथ जायेंगे,
क्या मालूम?
कोई ऊँट वाला,
घोड़े वाला
 हमें भी बिठा ले। 
मन क्रोध से बोला-
 किसकी करता तू प्रतीक्षा?
 इस भयानक स्वप्न पर जाना, 
चले जाओ अकेले, 
अपने साहस पर, 
मत मग्न हो भोग विलास पर,
 न कोई हमराही
न कोई होगा।

रचनाकार :- 

देवाराम भॉमू                 +919571524500
जाखली, मकराना
जिला नागौर
राजस्थान

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बहुमीखी प्रतिभा के धनी, काव्यश्री देवाराम भाॅमू समाज के गौरव

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आशाओं के दीप काव्यमंजरी में प्रकाशित काव्य रचना देवाराम राम भाम्बू


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भाम्बू गौत्र का इतिहास


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जंगल "काव्यश्री" सम्मान प्राप्त देवाराम राम भाम्बू की "अभ्युदय पत्रिका" में प्रकाशित काव्य रचना

आज आपके सामने पेश है  साहित्य रत्न और काव्यश्री सम्मान प्राप्त देवाराम राम भाम्बू की अभ्युदय हिन्दी मासिक पत्रिका में जुलाई 2021 में  प्रकाशित काव्य रचना 

 जंगल


जीवन तो फूलों का है 
जंगल के भौरों का है 
शहर के खण्डहरों में तो 
चमगादड़ ही बसते हैं।

है ज्ञान का भण्डार यहाँ 
रहते हैं जंगल में मंगल
 नित होता यज्ञ दान यहाँ 
ऋषि मुनि यहाँ बसते हैं |

डाली पर कोयल बोले
 यहाँ तितलियाँ है मस्ती मे 
बना छतरी मोर नाचे
 तैरते हैं हंस ज्यों कश्ती में।

भौरों की भरमार है
 जंगल जीवन का सार है। 
है प्राणवायु का दाता 
प्राणवायु ही संसार है ।

जीव चींटी से बंदर तक
 रहते एक वट पर हजार
 उछल कूद करते रहते 
आते वृक्ष के आर पार

मिलते हैं जंगल में मंगल 
जंगल जीवन का आधार 
रहे जीव सभी मस्ती में 
यह ही प्रकृति का उपहा



रचनाकार :- 

देवाराम भॉमू                  +919571524500
जाखली, मकराना
जिला नागौर
राजस्थान

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बहुमीखी प्रतिभा के धनी, काव्यश्री देवाराम भाॅमू समाज के गौरव

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आशाओं के दीप काव्यमंजरी में प्रकाशित काव्य रचना देवाराम राम भाम्बू

आज आपके सामने पेश है  साहित्य रत्न और काव्यश्री सम्मान प्राप्त देवाराम राम भाम्बू की काव्यमंजरी  में प्रकाशित काव्य रचना 



आशाओं के दीप

थम गई है दुनिया
फिर तू कहाँ जाता है? 
रुक जाना राही
रुक जा
बाहर कोई हवा है, 
मारने वाली।
बदल गया है मौसम,
आंधी कोई भयानक आई है। 
रुक जा राही रुक जा
बीमारी कोई नई आई है। 
बाहर मौत का तांडव है,
उजड़ गये हैं घर,
उजड़ी है मानवता
लेकर अपने संग मौत
कोई बीमारी आई है।
रुत बदल गई.
मास बदल गये,
अपने भी बदल गये। 
रुक जा चार दीवारी में
बीमारी कोई आई है। 
कुछ दिनों की बात है
फिर आयेगा सावन,
भौरों की गूंज होगी।
कोयल की कूक होगी। 
नई आशाओं की किरणे
फिर धरती पर होंगी।
आशाओं के दीप जला दे
छोड़ नफ़रत की दीवारें 
ऊसर भूमि में,
बीज प्रेम के डाल दे।
ये दिन संकट के,
बीत जायेंगे।
मौसम खुशगवार होगा
कोरोना दुम दबा भागेगा।
हरियाली होगी, 
रिमझिम सावन होगा।
होंगे सपने फिर जीवित,
आशाओं की ओर कदम बढ़ा
निराशा करती निवास श्मशान में,
आशाओं के दीप जला दे,
रुक जा राही रुक जा।





रचनाकार :- 

देवाराम भॉमू       +919571524500
जाखली, मकराना
जिला नागौर
राजस्थान

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बहुमीखी प्रतिभा के धनी, काव्यश्री देवाराम भाॅमू समाज के गौरव

पीपल के पेड़ से पद्मश्री पुरस्कार तक प्रकृति प्रेमी हिमताराम जी भाम्बू, हमारे भाम्बू परिवार व देश के गर्व

 


 6 फ़ीट ऊंचा पालक का पौधा मालीगांव



फाल्गुन मास,होली और धमाल,मोज़ मस्ती कहाँ गए वो दिन?सब कुछ बदल गया

 

भाम्बू गौत्र का इतिहास


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शुक्रवार, 10 सितंबर 2021

अन्नपूर्णा हो तुम घर की, देवाराम भाम्बू की कलम से

आज आपके सामने पेश है  साहित्य रत्न और काव्यश्री सम्मान प्राप्त देवाराम राम भाम्बू की कविता कानन पत्रिका में छपी काव्य रचना अन्नपूर्णा हो तुम घर की



अन्नपूर्णा हो तुम पर की। 
सरल साधिका आठ प्रहर की। 
तुम हर लेती  मन की पीड़ा
मेरा जीवन-नीड सजाया। 
दी सुगंध तुमने ही उसको, 
नित प्रति खुशियों से चहकाया।
 प्रेम लुटाया सारे घर को 
बाधा हरती रही डगर की 
अन्नपूर्णा हो तुम घर की ।।1।। 
मेरे जीवन की बगिया में, 
मधुर महक फूलों की भर दी। 
तुम्हीं सजाती नित घर द्वारा, 
तुमने ज्योति निराली भर दी। 
तुम गृह लक्ष्मी, तुम   अर्द्धागिनि
तुम हो सहचरि जीवन भर की 
अन्नपूर्णा हो तुम घर की ।। 2 ।। 
तुम मेरे नीरस जीवन में, 
इसकी धारा बनकर आई। 
तुम मेरे सांसों में रहती, 
छाया बनकर मन में छाई। 
लगी बोलने मेरे घर की,
 में दीवारें भी पत्थर की 
अन्नपूर्णा हो तुम घर की ।।3।। 


थके हुए क़दमों को तुमने, 
सौंपी नव रफ्तार सुहानी
शनैः शनैः परवान चढ़ गई, 
हम दोनों की प्रेम कहानी।। 
निभा सका में सहज भूमिका, 
प्रेयसि एक सहज सहर की। 
अन्नपूर्णा हो तुम घर की ।।4।।



रचनाकार :- 



देवाराम भॉमू
जाखली, मकराना
जिला नागौर
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बहुमीखी प्रतिभा के धनी, काव्यश्री देवाराम भाॅमू समाज के गौरव

पीपल के पेड़ से पद्मश्री पुरस्कार तक प्रकृति प्रेमी हिमताराम जी भाम्बू, हमारे भाम्बू परिवार व देश के गर्व

 

 6 फ़ीट ऊंचा पालक का पौधा मालीगांव



फाल्गुन मास,होली और धमाल,मोज़ मस्ती कहाँ गए वो दिन?सब कुछ बदल गया

 

भाम्बू गौत्र का इतिहास


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बुधवार, 8 सितंबर 2021

सब दिन होत ना एक समान देवाराम भॉमू की काव्य रचना

आज आपके सामने पेश है  साहित्य रत्न और काव्यश्री सम्मान प्राप्त देवाराम राम भाम्बू की स्वर्णिम दर्पण पत्रिका में  प्रकाशित काव्य रचना 

सब दिन होत ना एक समान

सब दिन होत ना एक समान ।
हरा-भरा और फूलों से लदा
डाली ओस रस बरस रही
फूल से फूल पर उड़ते भौंरे
पतझड़ में पत्तियां बूँद को तरस रही।
सब दिन होत न एक समान 1



सावन का महीना
झूले और राग मल्हार
टप-टप बरसे पत्ते
और रिमझिम बौछार |
सब दिन होत ना एक समान । - 2





कच्ची -कच्ची कली खिली                                   
भौंरे उड़ - उड़ आये
ले सुगन्ध मधुर
चक्कर चारों ओर लगाये ।
खुशियाँ भरी अपार 
उड़े और आये 
लगी है योवन की आश
 बैठ कली पर गीत गाये ।
आज उम्मीद हुईं हैं जवान 
सब दिन होत ना एक समान ।2।।


रोज दो ही बाद
कली खिली बना फूल 
डाली-डाली भौंरे नाचे
नष्ट हुए सब शूल ।
मधुर मकरंद मे डूबे
भौंरे हुए जवान
फैली सुगन्ध, रूप रंग सुन्दर 
फूल हुए जवान ।
हैं योवन पूर्ण
भ्रमर प्रहरी दिन-रात
फूल ही दुनिया
सब भूले आज ।
नष्ट योवन मिट गया सम्मान 
सब दिन होत ना एक समान ।3।।

जब फूल है मुरझाया 
जीवन रस खो चुके 
फिर योवन की चाह में                                                             
भौंरे पलायन कर चुके ।
भटक गया सबका ध्यान
 सब दिन होत ना एक समान ||4|



रचनाकार :- 

देवाराम भॉमू
जाखली, मकराना
जिला नागौर
राजस्थान

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बहुमीखी प्रतिभा के धनी, काव्यश्री देवाराम भाॅमू समाज के गौरव

पीपल के पेड़ से पद्मश्री पुरस्कार तक प्रकृति प्रेमी हिमताराम जी भाम्बू, हमारे भाम्बू परिवार व देश के गर्व

 

 6 फ़ीट ऊंचा पालक का पौधा मालीगांव



फाल्गुन मास,होली और धमाल,मोज़ मस्ती कहाँ गए वो दिन?सब कुछ बदल गया

 

भाम्बू गौत्र का इतिहास


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