आज आपके सामने पेश है साहित्य रत्न और काव्यश्री सम्मान प्राप्त देवाराम राम भाम्बू की काव्यमंजरी में प्रकाशित काव्य रचना उम्मीदों का साथ न छोड़ो
उम्मीदों का साथ न छोड़ो
कर्म पथ पर बढ़े चलो
हिम्मत वाले हो तुम तुफानो की दिशाएं मोड़ो
उम्मीदों का साथ न छोड़ो
पतझड़ आता है और चला जाता है
वृक्ष फिर सदा की भांति हरा हो जाता है
हर रात का सवेरा होता है।
चांदनी नहीं होती हर निशा
नहीं लदा रहता पेड़ फूलों से सदा
उठो!मत डूबो निराशा में
मत रहो अंधेरी दुनिया में त्याग दो रे निराशा
तुम हिम्मत वाले
जग के दीपक
उजियारा फैला दो
यह दुख तो झूठा है।
समझो रीति दुनिया की
कष्ट है पग-पग पर
फिर भी मुस्काओं
हर परिस्थिति में, या जुनून लेकर,
उठो और आगे बढ़ो,
क्यों बैठे हो बंद मकान में
इस बार असफल हुआ तो क्या हुआ
अबकी बार तू सफल होगा
पकड़ सिर बैठना काम कायरता का
रख बाहों में शक्ति
रोना और चिंता करना काम नहीं तेरा
रहे है कंटीली कर्म पथ न छोड़ो उम्मीदों का साथ न छोड़ो।
रचनाकार :-
काव्यश्री देवाराम भॉमू
जाखली, मकराना
जिला नागौर
राजस्थान
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