सभी बड़े बुजर्गो को चरण स्पर्श राम राम
आप सबको ज्ञात है पहले जब सती प्रथा पर रोक नही थी तब उस जमाने में सती प्रथा का प्रचलन था घर की औरत अपने पति की मृत्यु हो जाने पर उसके दाह संस्कार में उसके साथ जलकर भस्म हो जाती थी और सती कहलाती या बन जाती थी। इस प्रकार से देश मे अनेकों सती माताएं हुई है उसी क्रम मैं आपको अपने परिवार भाम्बू गोत्र में उस समय सती दादी (सती माताएं ) के बारे में बताना चाह रहा हु कब? कहा? और क्यो? सती हुई उनकी पूरी कहानी आपको बताने जा रहा हु अपने गोत्र की सभी सती मातावों के जानकारी क्रमश: आपको उपलब्ध करवाने की कोशिश कर रहा हु कोई गलती हो तो क्षमा करना। लाम्बा जाटान व लोहावट सती दादी की कथा बड़े भाई नरसाराम जी भाम्बू लोहावट द्वारा उपलब्ध करवाई गई है उसके लिए उनका बहुत बहुत धन्यवाद
1.महासती दादी केसी देवी नारनोद-मालीगांव (पहले का लडेरा खेड़ा)
|
महासती दादी केसी देवी नारनोद-मालीगांव |
आपको सती मतावों के क्रम में अपने परिवार की प्रमुख सतियो में से एक प्रमुख सती दादी दादी केसी देवी धर्म पत्नी चौधरी कुम्भाराम जी भाम्बू के सती होने का व्रतांत सुनाता हूं
एक समय की बात है विक्रम सम्वत 1587( सन 1530) में लडेरा खेडा गाँव मे चौधरी कुम्भा राम जी की धर्म पत्नी केसी देवी अपने खेतों में अपने पशुवों को चराने के लिए लेकर गई हुई थी तो वहां से गुजर रही बादशाह हुमायूं की फ़ौज ने उसको देखा तब फ़ौज ने गलत इरादों से गलत नियत से केसी देवी को बादशाह हुमायु की फ़ौज ने पकड़कर मुसलमान बनाने लगी धर्म परिवर्तन करने लगे और साथ ले जाने लगे तब चौधरी कुम्भा राम जी और लादूराम जी तथा बेटे कुंतल पातल ने बादशाह की फ़ौज से लड़ाई करी गाँव के अन्य जाती के लोगो ने भी उस लड़ाई में उनकी मदद की इस लड़ाई में चौधरी कुम्भा राम सर कट गया जिनका स्वर्ग वास हो गया पर फिर भी लड़ाई में विजय भाम्बूवो की ही हुई कई मुसलमानों को मार गिराया बादशाह की फ़ौज भाग खड़ी हुई ओर विजय भाम्बू परिवार की हुई हुई और अपना धर्म बचाया । उसी समय चौधरी कुम्भा राम जी की धर्मपत्नी केसी देवी अपने पति के शरीर को अपनी गोद मे रखकर उनके साथ ही सती हुई विक्रम संवत1587 (सन 1530) की साल बैसाख सुदी दूज के दिन दादी माँ सती हुई थी ।उसके बाद उनके परिवार ने लडेरा खेड़ा जगह को छोड़ दिया और वहां से उठकर तीनो गाँव बसाए नारनोद मालीगांव और अलीपुर जहां वो सती हुई वहाँ उनका मन्दिर बना हुवा है माता ने बहुत पर्चे दिए
कई सालों तक उनको मानते रहे मेला भी भरता था पर ऐसा सुना है एक दिन मेले के समय परिवार के कुछ लोगो पर जो मेला देखने आए थे वहां खड़े थे उनके ऊपर माता के देवरे मन्दिर की पट्टिया टूटकर गिर गई और 6-7लोगो की वही मृत्यु हो गई तब से परिवार के लोगो ने उनको मानना छोड़ दिया है काफी सालों तक उनका मन्दिर मात्र एक अवशेष रह गया था लेकिन 2019 के बाद किसी भाम्बू भाई ने पुनः उस मंदिर का मरम्मत करवाकर निर्माण करवाया है यह दादी की ही मेहर है। यह मंदिर मेरे गाँव मालीगांव से 2 किमी दूरी पर नारनोद गाँव से आगे एक टिल्ले पर जहाँ पुराना लडेरा खेडा गाँव बसा था वही पर है।
दादी सबकी मनोकामना पूर्ण करे।
प्रेम से बोलो दादी केसी देवी की जय
-----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
2.महासती दादी नेती देवी (नेतल देवी) लाम्बा जाटान
|
महासती दादी नेती(नेतल देवी) |
महासती दादी नेती(नेतल देवी) के सती बनने और पूजे जाने की तथा लाम्बा जाटान की बसासत की कथा कुछ इस प्रकार है सम्वत 1601मे सींथल गांव उजड़ने पर सिंथलिया भाम्बू परिवार के बारह 12 भाई अलग-अलग जगह पर जाकर बसे थे ।जिसमें से एक परिवार सूरपुरा बिकानेर जिले में बसा था । कुछ साल बाद एक परिवार सूरपुरा से लाम्बा जाटान जिला नागौर में जाकर बसा था । लाम्बा जाटान गांव के निवासी पुनिया परिवार के रामा रामजी की बेटी और उदाराम जी की पोती नेती बाई का रिश्ता भाम्बू परिवार लाम्बा गांव में तोलाराम नामक लड़के से ही तय किया गया नेती बाई का ननिहाल लाम्बा गांव निवासी खिचड परिवार में था नेती बाई का केवल रिश्ता ही किया हुआ था शादी हुई नहीं थी, सम्वत 1692 में (सन 1635) नेती बाई की उम्र 14या 15वर्ष के लगभग थी घर से खाना जिसे (भाता) बोलते हैं अपने पिता व परिवार वालों के लिए लेकर खेत जा रही थी तो बिच रास्ते में एक काले नाग ने आकर रास्ता रोक लिया तो नेती वही खड़ी रही सामने भाम्बू परिवार का एक जवान जिसका नाम तोलाराम या तोला जी था अपने खेत में खडा था उसने नेती बाई को खड़ा देख कर दोड कर आया और देखा तो काला नाग रास्ता रोके हुए था
|
महासती दादी नेती(नेतल देवी) |
उस नोजवान तोलाराम जी ने नाग पर लाठी से वार किया तो नाग ने ऊछलकर उस जवान तोलाराम जी को डस लिया और वही उस लड़के तोलाराम जी की की मृत्यु वहीं हो गई। नेती अपने घर पहुंची और घर वालो को सारा विवरण बताया तो नेती बाईं को पता चला की वो नोजवान तोलाराम जो उसकी रक्षा के लिए मर गया वो तो वही लड़का तोलाराम जी है जिससे नेती बाई का रिश्ता किया हुआ था जो कि भाम्भू परिवार का लाडला था तो नेती बाई उसे अपना पति स्वीकार कर उसके पीछे सती होने कि ठान ली फिर अपने माता पिता से सती होने के लिए बेस (वस्त्र)मांगा तो माता पिता ने मना कर दिया तो फिर नेती बाई अपने ननिहाल खिचड परिवार के पास पहुची उनसे बेस (सती होने के लिए ओढ़ने पहनने का सुहागन वस्त्र)मांगा तो उन्होंने भी मना कर दिया उसके बाद नेती अपनी सासु मां (जो उस मृत लड़के तोलाराम (तोलाजी) की माँ थी भाम्बू) के पास गई और बोली सासु मां में आपके बेटे के पिछे सती होना चाहती हु आप मुझे सती होने के लिए बेस (वस्त्र) देवे । |
महासती दादी नेती(नेतल देवी) |
तो उसकी सासु ने बेस दे दिया और नेती बाई (नेतल देवी) बेस लेकर अपने पती के साथ जेठ शुदी 12 बारस सोमवार को सम्वत 1692 (सन 1635) में सती हो गई।सती होते समय श्राप दिया कि "पुनिया पनपज्यो मति खिचड ऊत ऊठ जाय" और लाम्बा गांव में में पुजसि भाम्भू परिवार " ऐसा कहा जाता है कि उस दिन के बाद लाम्बा गांव में से पुनिया व खिचड गोत्र के परिवार उजड़ गए। आज के दिन तक लाम्बा जाटान गाँव मे एक भी परिवार इस गोत्र (पूनिया और खींचड़ )का नही है । और भाम्भू परिवार के आज लाम्बा गांव में 400 से 450 के लगभग भाम्बू गोत्र के परिवार है ।नेती बाई (नेतल देवी) के पिताजी का नाम रामा जी या रामराम जी पूनिया था व दादाजी का नाम उदाराम जी पूनियां था और दादी जी के पति जिन पर वो सती हुई उनका नाम तोलाजी भाम्बू (तोलाराम भाम्बू जिससे नेती बाई की सगाई हो रखी थी ) था। आज भी गाँव मे जेठ शुदी 11 ग्यारस की भजन कीर्तन सत्संग होता है और 12 बारस द्वादशी के दिन महाप्रसाद होता है।
|
महासती दादी नेती(नेतल देवी) |
उसके बाद वहां नेती देवी का मंदिर बना जो आज भव्य रूप से खड़ा है आज भी दादी नेती देवी मन से मांगी गई हर मुराद पूरी करती है और अपने भक्तों की हर इच्छा मनोकामना पूर्ण करती है । पूरा भाम्बू परिवार माता को मानता है और पूजता है सब प्रेम से बोलो जय दादी नेती(नेतल देवी) की जय हो
------------------------------------------------------------------------
------------------------------------------------------------------------
3. महासती दादी जी रूपा देवी लोहावट
महासती दादी रूपा देवीजी के सती बनने और पूजे जाने की तथा लोहावट की बसासत की कथा कुछ इस प्रकार है
|
महासती दादी रूपा देवीजी |
|
महासती दादी रूपा देवीजी |
सम्वत 1601(सन 1544)मे सिथल गांव उजड़ने पर सिथल को तलाक कर राहू रामजी व उनकी धर्मपत्नी रूपादेवी जिनका बचपन का नाम तोलिया था और रूपादेवी नाम से पुकारते थे रूपादेवी का गोत्र राड था। राड जिनको मिर्धा कि ऊपाधि दी हूई है। मिर्धा व राड एक ही है सिथल गांव छोड़ कर रूपादेवी व राहु राम जी अपने साथ सात पुत्रों को लेकर (पुत्रो के नाम क्रमशः) रामाराम पूलाराम, पालुराम, पाण्डु राम, नकोतरराम, आशाराम, नरसिंघाराम इन सातों पुत्रों सहीत बेलगाडी से सींथल गांव छोड़ कर लोहावट के लिए रवाना हुए वे रात्रि के समय लोहावट पहुंचे । लोहावट में जोगमाया के मठ में पुजारी पुजा कर रहा था तो जोत का ऊजाला (रोशनी) देख कर वहाँ आकर बेलगाडिया खड़ी कर दी सोचा कि यहां पर पानी व अन्य सामान सुविधा अवश्य मिलेगी और यह सोच कर वहीं पर रुक गए फिर दरबार मे वहां के राजा से बात की की हम यहां बसना चाहते है राजा ने रजामंदी दे दी और कहा कि जितनी जमीन के चारों तरफ आपकी बेलगाडियां घूमेंगी वहां तक का पटा आपको दे दिया जाएगा। तब राजा की बात सुनकर राहुरामजी भाम्बू अपने पुत्रों को साथ में लेकर लोहावट गांव के पश्चिम में गोगा जी की जाल(एक पेड़) से परिक्रमा शुरू कि जो परिक्रमा पुर्ण करते हुए लोहावट साथरी में पहुंचे तो वहा पर पहले से विश्नोई खोड व जानई गोत्र के लोग रह रहे थे तो उन्होंने ने उनको रोक कर लड़ाई कि व बेलगाडियो की पुठिया तोड़ दी फिर राहुराम जी भाम्बू ने बेलगाडिया बाध कर (तैयार कर) फिर परिक्रमा शुरू की और पुर्ण करते हुए लोहावट विश्नावास सिमा पहुंचते पहुँचते उनके बैल दो मर गए , जिनकी वहां पर आज भी( बेलों )की छतरी बनी हुई है पास ही कुछ दुरी पर राहुराम जी भाम्बू की छतरी बनी हुई है। इस प्रकार सम्वत 1601 (सन 1544)राहुराम जी भाम्बू का परिवार लोहावट में बस गया। फिर कुछ समय बाद दिल्ली दरबार के पास आशारामजी पहुंचे व गांव सीमा का पट्टा ले लिया जब वो पट्टा कर वापिस आ रहे थे तो विश्नोई खोड गोत्र के लोगों ने आशारामजी को मार कर बोडिए कुए (अभूर्ण कुवा) में डाल दिया। इसमें जानी गोत्र के लोगो ने भी उनका सहयोग किया था, उसी रात्री में आशाराम जी भाम्बू ने अपनी मा रूपादेवी के स्वपन में आकर बताया कि मुझे मारकर कुए में डाल दिया है।और जमीन का पट्टा जो मैं बादशाह से लेकर आया था वो मैंने विश्नोई यो को आते देख कर छुपा दिया है । सुबह रूपा देवी ने लोगों को इकट्ठा कर के कुए में से आशाराम जी की लाश को निकलवाया और जहा स्वप्न में पट्टा छुपाया बताया वहा से जमीन का पट्टा निकाल लिया । फिर आशाराम जी के शरीर व जमीन का पट्टाले कर रूपा देवी अपने घर पहुची और सम्वत 1608 (सन 1551) मे आशाराम जी के मृत शरीर को अपनी गोद में ले कर में सूर्य भगवान से प्रार्थना की और जिंदा सती हो गई। सती होने के वक्त श्राप दिया कि" जाणि रह जो जोबरला खोड जाज्यो जड़ा मूल " उसके बाद खोड गोत्र का लोहावट से विनाश हो गया,
आज भी जानी गोत्र चाहे जाट हो या विश्नोई लोहावट कि सीमा में रहता है तो तो उसका परिवार नही बढता है अर्थात निपुत्रा(बांझ) रहता है,जोबरला ही रहता है मेघवाल व ढाढि जाती को ही सती होने के वक्त बुलाया था मगर उस गांव वाले मोची मेघवाल व ढाढ़ी नही पहुंचे तब सती दादी ने कहा था वचन दिया/आदेश दिया था कि मेरे दिन दशमा (दशमी तिथि के दिन) को मेरे परिवार कि औरतें मेघवाल आदि अन्य sc कास्ट को पानी भी नही पिलायेंगी और न ही बात करेंगी व अगता (व्रत) रखेंगी। उस दिन से लेकर आज तक दशमी तिथि शुक्ल पक्ष में उनके परिवार की औरतें अगता (वही नियम व्रत) रखती है ।आज भी अगर कोई औरत जानबूझ कर अगता (नियम व्रत) नही रखती है SC ST के लोगो से बात करती है पानी पिला देती है,उनका आदर करती है तो तो तुतंत उस महिला के परिवार में कोई नुकसान होना तय है। रूपादेवी के चमत्कार हाथो हाथ होते हैं और कोई परेशानी के कारण यहां सती दादी जी की बोलवा (मानता)करते हैं तो शुकल पक्ष कि दशमी तिथि को महासती दादी जी के नाम पर केवल दो या चार भांभू परिवार कि कन्याएं को खाना खिला कर दक्षिणा दी जाती है तो दादी जी की उन कन्यावों पर पुर्ण मेहरबानी दया रहती है और हर साल माध माह की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को यहाँ दादी माँ का बड़ा मेला भरता है मैले में भाम्बू परिवार कि जो भी लड़कियां आति है उनको मेला कमेटी द्वारा श्रद्धा अनुसार ओढावणी करनी जरूरी है , तो सबकी ओढावणी करते हैं और उन्हें भेंट देते है। महासती दादी जी के चार पुत्रों का परिवार आगे बढ़ा था जो लोहावट जाटावास में छह सो से सात सौ परिवार यहां आज आबाद हैं यहां से निकल कर कई परिवार बाड़मेर जिले के काफी गांवों में जाकर बस गए वो वहां अबतक आबाद है सम्वत 1608 (सन 1551)से आज तक लोहावट में 14 पिढिया इस परिवार कि हुई है और राहुराम जी व उनकि धर्म पत्नी रूपादेवी महासती दादी जी ने सम्वत 1601 (सन 1544)मे लोहावट जाटावास गांव की नींव रख कर गांव बसाया था आज भी दादी सच्चे मन से मांगने वाले की हर इच्छा मनोकामना पूर्ण करती है और पर्चा देती है।
जय हो महासती दादी जी रूपा देवी जी की जय हो
------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
मेरी जानकारी में अभी ये तीन सती दादी की कहानियां ही है और जानकारी आने पर अपडेट कर दी जाएंगी
धन्यवाद
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
हमारे ब्लॉग पर आने लिए धन्यवाद आपकी राया हमें और लिखने का होंसला देती है