आज आपके सामने पेश है साहित्य रत्न और काव्यश्री सम्मान प्राप्त देवाराम राम भाम्बू की कविता कानन पत्रिका में छपी काव्य रचना अन्नपूर्णा हो तुम घर की
अन्नपूर्णा हो तुम पर की।
सरल साधिका आठ प्रहर की।
तुम हर लेती मन की पीड़ा
मेरा जीवन-नीड सजाया।
दी सुगंध तुमने ही उसको,
नित प्रति खुशियों से चहकाया।
प्रेम लुटाया सारे घर को
बाधा हरती रही डगर की
अन्नपूर्णा हो तुम घर की ।।1।।
मेरे जीवन की बगिया में,
मधुर महक फूलों की भर दी।
तुम्हीं सजाती नित घर द्वारा,
तुमने ज्योति निराली भर दी।
तुम गृह लक्ष्मी, तुम अर्द्धागिनि
तुम हो सहचरि जीवन भर की
अन्नपूर्णा हो तुम घर की ।। 2 ।।
तुम मेरे नीरस जीवन में,
इसकी धारा बनकर आई।
तुम मेरे सांसों में रहती,
छाया बनकर मन में छाई।
लगी बोलने मेरे घर की,
में दीवारें भी पत्थर की
अन्नपूर्णा हो तुम घर की ।।3।।
थके हुए क़दमों को तुमने,
सौंपी नव रफ्तार सुहानी
शनैः शनैः परवान चढ़ गई,
हम दोनों की प्रेम कहानी।।
निभा सका में सहज भूमिका,
प्रेयसि एक सहज सहचर की।
अन्नपूर्णा हो तुम घर की ।।4।।
रचनाकार :-
देवाराम भॉमू
जाखली, मकराना
जिला नागौर
राजस्थान
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