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शुक्रवार, 10 सितंबर 2021

अन्नपूर्णा हो तुम घर की, देवाराम भाम्बू की कलम से

आज आपके सामने पेश है  साहित्य रत्न और काव्यश्री सम्मान प्राप्त देवाराम राम भाम्बू की कविता कानन पत्रिका में छपी काव्य रचना अन्नपूर्णा हो तुम घर की



अन्नपूर्णा हो तुम पर की। 
सरल साधिका आठ प्रहर की। 
तुम हर लेती  मन की पीड़ा
मेरा जीवन-नीड सजाया। 
दी सुगंध तुमने ही उसको, 
नित प्रति खुशियों से चहकाया।
 प्रेम लुटाया सारे घर को 
बाधा हरती रही डगर की 
अन्नपूर्णा हो तुम घर की ।।1।। 
मेरे जीवन की बगिया में, 
मधुर महक फूलों की भर दी। 
तुम्हीं सजाती नित घर द्वारा, 
तुमने ज्योति निराली भर दी। 
तुम गृह लक्ष्मी, तुम   अर्द्धागिनि
तुम हो सहचरि जीवन भर की 
अन्नपूर्णा हो तुम घर की ।। 2 ।। 
तुम मेरे नीरस जीवन में, 
इसकी धारा बनकर आई। 
तुम मेरे सांसों में रहती, 
छाया बनकर मन में छाई। 
लगी बोलने मेरे घर की,
 में दीवारें भी पत्थर की 
अन्नपूर्णा हो तुम घर की ।।3।। 


थके हुए क़दमों को तुमने, 
सौंपी नव रफ्तार सुहानी
शनैः शनैः परवान चढ़ गई, 
हम दोनों की प्रेम कहानी।। 
निभा सका में सहज भूमिका, 
प्रेयसि एक सहज सहर की। 
अन्नपूर्णा हो तुम घर की ।।4।।



रचनाकार :- 



देवाराम भॉमू
जाखली, मकराना
जिला नागौर
राजस्थान

कविता आपको कैसी लगी कॉमेंट करके जरूर बताना



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बहुमीखी प्रतिभा के धनी, काव्यश्री देवाराम भाॅमू समाज के गौरव

पीपल के पेड़ से पद्मश्री पुरस्कार तक प्रकृति प्रेमी हिमताराम जी भाम्बू, हमारे भाम्बू परिवार व देश के गर्व

 

 6 फ़ीट ऊंचा पालक का पौधा मालीगांव



फाल्गुन मास,होली और धमाल,मोज़ मस्ती कहाँ गए वो दिन?सब कुछ बदल गया

 

भाम्बू गौत्र का इतिहास


मेरे बारे में ..



बुधवार, 8 सितंबर 2021

सब दिन होत ना एक समान देवाराम भॉमू की काव्य रचना

आज आपके सामने पेश है  साहित्य रत्न और काव्यश्री सम्मान प्राप्त देवाराम राम भाम्बू की स्वर्णिम दर्पण पत्रिका में  प्रकाशित काव्य रचना 

सब दिन होत ना एक समान

सब दिन होत ना एक समान ।
हरा-भरा और फूलों से लदा
डाली ओस रस बरस रही
फूल से फूल पर उड़ते भौंरे
पतझड़ में पत्तियां बूँद को तरस रही।
सब दिन होत न एक समान 1



सावन का महीना
झूले और राग मल्हार
टप-टप बरसे पत्ते
और रिमझिम बौछार |
सब दिन होत ना एक समान । - 2





कच्ची -कच्ची कली खिली                                   
भौंरे उड़ - उड़ आये
ले सुगन्ध मधुर
चक्कर चारों ओर लगाये ।
खुशियाँ भरी अपार 
उड़े और आये 
लगी है योवन की आश
 बैठ कली पर गीत गाये ।
आज उम्मीद हुईं हैं जवान 
सब दिन होत ना एक समान ।2।।


रोज दो ही बाद
कली खिली बना फूल 
डाली-डाली भौंरे नाचे
नष्ट हुए सब शूल ।
मधुर मकरंद मे डूबे
भौंरे हुए जवान
फैली सुगन्ध, रूप रंग सुन्दर 
फूल हुए जवान ।
हैं योवन पूर्ण
भ्रमर प्रहरी दिन-रात
फूल ही दुनिया
सब भूले आज ।
नष्ट योवन मिट गया सम्मान 
सब दिन होत ना एक समान ।3।।

जब फूल है मुरझाया 
जीवन रस खो चुके 
फिर योवन की चाह में                                                             
भौंरे पलायन कर चुके ।
भटक गया सबका ध्यान
 सब दिन होत ना एक समान ||4|



रचनाकार :- 

देवाराम भॉमू
जाखली, मकराना
जिला नागौर
राजस्थान

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बहुमीखी प्रतिभा के धनी, काव्यश्री देवाराम भाॅमू समाज के गौरव

पीपल के पेड़ से पद्मश्री पुरस्कार तक प्रकृति प्रेमी हिमताराम जी भाम्बू, हमारे भाम्बू परिवार व देश के गर्व

 

 6 फ़ीट ऊंचा पालक का पौधा मालीगांव



फाल्गुन मास,होली और धमाल,मोज़ मस्ती कहाँ गए वो दिन?सब कुछ बदल गया

 

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