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मंगलवार, 24 सितंबर 2019

भाम्बू गौत्र का इतिहास

सभी भाम्बू गोत्र के बड़े बुढो को चरण स्पर्श छोटो को मेरा प्यार व हमउम्र भाइयों को नमस्ते
मैंने अपने भाम्बू गोत्र के इतिहास बारे में  कुछ जानकारियां इकट्ठी की है जो आपके सामने मय सबूत पेश (शेयर) कर रहा हु इसमें अगर कोई त्रुटि रह गई हो तो क्षमा करना और सुधार हेतु मेरे नम्बर 9829277798 पर व्हाट्सएप्प मय सबूत भेज सकते है उसे अपडेट कर दिया जाएगा
 भाम्बू गोत्र की उत्तपत्ति उद्धभव ओर विकास (बसासत)
1 जानकारी
बही भाट(जागा) बडुवा, कमेडिया,आदि से प्राप्त
वंश:- चंद्र 
(कुल 36 वंश बताए गए है जिनमें भाम्बू का वंश चन्द्र है)
तड़:- आनना (आण्णा) 
(जाटों में चार तड़ होती है 1 ऐजा 2 केजा 3 जतूनलिया 4 (आण्णा )आनना भाम्बू आण्णा तड़ के जाट है)
गोत्र :-आत्री
माता अनुसुईया
नख :- तंवर/तोमर जाट
निकास :; हस्तनापुर दिल्ली से निकास
तंवर/तोमर क्षत्रीय 
1पहला गाँव  हरियाणा में कुंजला खेड़ा बसाया 
2बाद में तेजरासर गाँव,
3बराला,
4 लडेरा खेड़ा 
यहां से जाकर हरिपुरा गाँव,भवानीपुर गाँव ,कुतकपुरा धीरासर गाँव भामासी  गाँव बड़पालसर गाँव ,ढढार गाँव आदि गाँव बसाए
भाम्बू  ढुकिया(डूकिया),डोटासरा तीनो एक ही मा कि कोख़ से पैदा होने के कारण जात (दूध)भाई माने गये है इसीलिए इनमें आजतक आपस मे शादी विवाह का रिश्ता नही होता है
किस प्रकार अपने पूर्वजों को भाम्बू गोत्र मिला:-
तंवर जाट क्षत्रिय वंश का राजा  बाघ सिंह था उसके 12 बेटा हुए उनमें से  9 वां बेटा बीरसेन हुवा जिनका विवाह पूनिया खेड़ा गाँव की  राजपाल जी पुत्री ओर हरसुख जी की पोती सदा बाई पुनणी से हुवा।
उसके तीन बेटे हुए 
1भिवसिंह
2दोहट सिंह
3 देवीसिंह
जिन्होंने अपना धर्म (गोत्र) अपनाया विक्रमी सम्वत 1251(सन 1194) में कुतबुद्दीन बादशाह के राज के समय
दोहट सिंह जी के जन्मे जाट डोटासरा जाट हुए या कहलाये
देवीसिंह जी के जन्मे वो जाट ढुकिया जाट हुए या कहलाये।
(भाम्बू ढुकिया,डोटासरा तीनो गोत्र दूध भाई गोत्र है)
(तीनो दुध भाई होने के कारण आज भी इनमें आपस मे शादी विवाह रिश्ता नही होता)
अतः जानकारी सामने आई भाम्बू गोत्र भीमसिंह जी ने चलाया जो विक्रम संवत 1251 (सन 1194) में अस्तित्व में आया।
भीवसिंह जी की शादी असपाल जी गोदारा की लड़की तनसुख जी की पोती राजा  गोदारी के साथ हुई थी
भिवसिंह जी के दो पुत्र हुए थे 1 कुंजल जी 2 सिहोजी
कुंजल जी की शादी पाला जी की बेटी और जेताराम जी की पोती राधा बाई सहारण के साथ हुई।
विक्रम संवत1251 (सन1194) में दोनों ने अपने  पिता भिवसिंह की आज्ञा से  हस्तिनापुर छोड़ा
 कुंजल जी ने कुंजला खेडा गाव बसाया जहां के भाम्बू कुंजलिया भाम्बू कहलाये
सिहोजी ने सिंथलिया गाँव बसाया जहां के भाम्बू सिंथलिया भाम्बू कहलाये
यानी 1251(सन 1194) में ही भाम्बू दो भागों में बंट गए कुंजलिया ओर सिंथलिया 
कुंजल जी ने गाँव कुंजला खेड़ा में गायों के चरने के लिए 100 बीघा जोहड़ा (बणी) छोड़ा तथा गांव कुंजला खेड़ा में महादेव पार्वती का मंदिर बनवाया ओर कुल देवी कुंजला माता के देवरा (मंदिर) चिनवाय(बनवाया) ओर पूजा पाठ करवाया और ब्राह्मणों का दान दक्षिणा दिया बादशाह की नोकरी की तथा बादशाह ने खुश होकर कुंजला खेडा का 12 हजार बीघा का पट्टा बनाकर दिया तब विक्रम सम्वत 1253 (सन 1196) कुतबुद्दीन के राज  में इस खुसी में कुंजल जी ने बही बाट जागा दीनदयाल जी पांच रुपये ओर एक ऊंट अनाज और पोशाख देकर बही में भी मंदिर देवरा ओर पट्टे की बाद दर्ज करवाई।
कुंजल जी के बेटा देहट जी और बेटी हरखू बाई थी
देहट जी की शादी  रामु जी की बेटी गजूजी की पोती हीरा बेनिवाल से हुई जिसके बेटा तेजराज व बेटी धापू,हेमी,सुखी हुई।
तेजराज जी शादी लादूराम जाखड़ जी बेटी धर्मा जाखड़ से हुई बेटे हुए मालसिंह,जसपाल सिंह,सुरपाल सिंह,ईशर सिंह बेटी हरबाई हुई
सुरपाल जी शादी जेसाजी की बेटी रुकमा ढाकी से हुई
बीटा गोपीनाथ ओर पहाड़ जी हुये
गोपीनाथ जी की शादी करमसिंह जी की बेटी धन्नी भाखर के साथ हुई बेटे अर्जुन ओर लोहट बेटी मणि हुई
ईशर जी की शादी करमसिंह की बेटी देबू बाई बेनीवाल से हुई
बेटा गोपाल,हरपाल,बेटी लिछमा,रुपा हुई। सम्वत 1260 (सन 1203)में जागा बही भाट ओंकार जी थे
पटेल साहब तेजराज जी  कवर ईशर जी ने सम्वत 1271(सन 1214) में तेजरासर गाँव बसाया अलीशाह बादशाह के राज में जागा चन्द्रसेन आया
गोपाल राम की शादी धीरा जी की बेटि रामा बाई कसवी से हुई जिनके बेटा नरपाल,करमचंद, बेटी उमरी बाई हुई
नरपाल जी की शादी रणसिंह जी की बेटी बदामी स्योराण से हुई और दूसरी शादी जगसिह जी की पारा महली से हुई
बेटा धरमसिंह,कालूसिंह,नानग सिंह,बाहड़ सिंह,चोखा राम,माडू जी,चुहड,लोहटजी ,देहड़,ठाकरसिह,गिदोजी,बणपाल,गिलो जी 12 बेटे हुये  बेटी राही,रुकमा
नरपाल जी को  कालूजी की शादी दयाली से हुई जिनके बेटा कीरतो जी और बछराज जी बेटी नाथी,कडीया हुई।
बछराज जी की शादी हैमाराम की बेटी गंगा पुनिया से हुई और दूसरी  भिव जी की रामा बाई बलोदी  से हुई बेटा खेतो राम,हरका राम बेटी लीला,करमा बाई हुई
खेता राम जी की शादि सोलराम जी की बेटी हरिया खींचड़ बाई से हुई

संवत 1440  (सन 1383)की साल में चौधरी  ईशर जी ,कालूराम जी के साथ गोपाल जी हरपाल जी ने तेजरासर गाँव छोड़कर भोड़की गाँव आये वहां के मीणा जाती के लोगो से झगड़ा करके कुएं की बाबत पर ओर फिर गाँव भोड़की छोड़ा और फिर विक्रम सम्वत 1452 (सन 1395) में गाँव लडेरा खेड़ा बसाया जो वर्तमान गाँव नारनोद ओर अलीपुर के बीच एक बड़े टीले भर पर था लडेरा खेड़ा गाँव मे फिरोजशाह बादशाह के राज में 11 हजार बीघा जमीन नाम कराई ओर  बसासत कर खेती करी जागा ओकर जी को ये सब बही में लिखवाया
चौधरी खेताराम राम जी के समय सम्वत 1507 (सन1450) मे बहलोल लोदी के राज में आया जागा,संवत1511 ( सन 1454) में गंगाराम जी और बछराज जी ने सोने की मुरका दी जागे को, संवत1535 (सन 1477)में जागा आया गाय दान में दी , फिर सम्वत 1545 (सन1488) में आया लडेरा खेडा गाँव मे, ही चौधरी साजन राम जी घोड़ी दी दान में
सम्वत 1551(सन 1494) में ,चौधरी जीवन राम ने सवा मन अनाज दिया सम्वत 1576 ( सन1519) की साल में लडेरा खेडा गाँव मे
खेताराम जी के  बेटे मेवाराम (भिवाराम) की शादी स्यामा जी की बेटी रुकमा देवी से हुई उसके बेटे साजन जी और सांगो जी हुये बेटी मीरा हुई। साजन जिनकी शादी पालाराम जी की बेटी हेमी महली से हुई जिनसे बेटा जीवनराम ओर धीराराम हुए
जीवनराम जी के सांगा जी की बेटी देबू बाई जाखड़ ब्याही गई
धीराराम जी के राजा श्योराण ब्याही गई जिनके बेटे  कुम्भाराम ओर लादूराम हुए बेटि हरकु बाई हुई
कुम्भाराम जी की शादी अजाड़ी गाँव की राजू जी की बेटी केसी महली से हुई 
लादूराम जी की शादी रामपाल जी की बेटी कमला बुडानिया से हुई
कुम्भाराम के बेटे कुंतल ओर पातल हुए
एक दिन  विक्रम सम्वत 1587( सन 1530) में लडेरा खेडा गाँव मे चौधरी कुम्भा राम जी की धर्म पत्नी केसी देवी को बादशाह हुमायु की फ़ौज पकड़कर मुसलमान बनाने लगी धर्म परिवर्तन करने लगे और साथ ले जाने लगी तब  कुम्भा राम जी और लादूराम जी तथा बेटे कुंतल पातल ने बादशाह की फ़ौज से लड़ाई करी गाँव के अन्य जाती के लोगो ने भी मदद की इस लड़ाई में चौधरी कुम्भा राम जिनका स्वर्ग वास हो गया पर फिर भी लड़ाई में विजय भाम्बूवो की हुई कई मुसलमानों को मार गिराया बादशाह की फ़ौज भाग खड़ी हुई ओर  विजय भाम्बू की हुई हुई ओर धर्म बचा । फिर चौधरी कुम्भा राम जी की  धर्मपत्नी  केसी देवी सती हुई विक्रम संवत1587 (सन 1530) की साल बैसाख सुदी दूज के दिन
चौधरी लादूराम ने इस युद्ध की याद में ओर भाई व भतीजे कुंतल पातल की वीरता तथा भाभी के सती होने की याद में जागा को  31 रुपया दो ऊंट सजावट सुधा  तलवार सुनहरी मुठ वाली दी अनाज ढाई मन दिया कामल ओर बेस मर्दानी पोशाख बही भाट जागा दीनदयाल जी को भाम्बू बही में  सम्वत 1590(सन 1533) में लिखवाया इसके बाद कुम्भा राम जी के बड़े बेटे कुंतल ने लडेरा खेड़ा गाँव को छोड़ कर नारनोद गाँव जो आज है बसाया ओर छोटे बेटे पातल ने अलीपुर गाँव जो आज है बसाया ओर चौधरी लादूराम जी ने मालीगांव गाँव बसाया
तीनो गाँव एक ही दिन बसे सम्वत 1638 (सन 1581) में बसे थे मालुखा पठान के राज में बसे है और बादशाह अकबर के शासन काल मे ये तीनो गाँव।
फिर लादूराम जी के लखमी चंद उनके रुडाराम ओर उनके कालू,धामा,जोधा ओर इस प्रकार हमारा पूरा गांव यानी मेरे पूर्वज बने और  बढ़ते गए जो आज 400 घरों की बस्ती है यहां से कई लोग दूसरे गावो में भी जाकर बस जैसे भोड़की, चंदवा का बास, बुडानिया,जखोड़ा ,साखन ताल,आदि की जगह बसे।
नोट:-
ये जानकारी बही भाट जागा की बही से ली गई है फोटो भी साथ संलग्न है जिनमे ये साफ साफ लिखा है और साथ मे वीडियो का लिंक भी दिया हुवा है जिसमे वर्तमान जागा राव रूपसिंह इन जानकारी कों पढकर सुना रहा है।
इसमें कोई सुझाव हो तो  आप आमंत्रित है कॉमेंट में लिखे अगर सही लगा तो अपडेट कर दिया जाएगा
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2.जानकारी इतिहासकारों से प्राप्त
कुछ इतिहासकारों से मिली जानकारी के अनुसार भाम्बू  गोत्र एक सहासी लड़ाकू  निर्भिक लड़ाकू गोत्र माना गया है।
भाम्बू गोत्र भद्रक जाट वंश  जो जाट वंश श्रृखला में से एक है। यह वंश चन्द्र वंश श्रेणी में ययति पुत्र द्रुहय वंश में हर्यश्व पुत्र भद्ररथ के वंशजो से प्रचलित हुआ है। दुसरी मान्यता  यह है कि विष्णु भगवान की दुसरी पत्नी रूचि पुत्र भद्र के वंशजों से चला है। ये भद्रक (भद्र) वंश इस वंश का वर्णन महाभारत में आता है। इस वंश का स्थित्व बीकानेर क्षेत्र में पाया जाता  है। राठौड़ों द्वारा निरन्तर तंग किये जाने तथा उनके जाट विरोधी अभियान के परिणाम स्वरूप यह वंश श्रीगंगानगर वर्तमान में हनुमानगढ़ जनपदों में भादरा क्षेत्र में इस वंश का राज्य था भादरा भद्रक वंशियों की राजधानी थी
 इस वंश की शााख में भाखर,भादू,भाम्बू,भादा,भेदा आदि आते है। जो अब स्वतंत्र गौत्र के रूप में प्रचलित है। यह वंश अति निर्भक,सहासी, लड़ाकू ताकतवर प्रवृति का रहा है। बीकानेर में राठौड़ो़ ने कुछ जाट ठिकानों के सहयोग से अन्य अन्य बीकानेर क्षेत्र में स्थित जाट वंशों पर दबाब डालकर वहां से इन्हें पलायन करने पर विवश किया और तत्पश्चात् में सहयोगी जाट वंशों के राजाओं को भी समाप्त कर दिया था।
इस वंश समूह के परिवार राजस्थान,पश्चिमी उत्तर प्रदेश,तथा हरियाणा में बहुतायत से है।
ये जानकारी  इतिहासकार डॉ. चौधरी बी.एस .बालियान जी की पुस्तक जाट/ जट वंशावली अथ गोत्रावली  पेज न. 200 सें ली गई है।
आज भाम्बू गोत्र एक स्वतंत्र गोत्र है जिसे आज भाम्बू,बाम्भू,बामू,बामूं,बांभू,भामु आदि कई नामों से बोलते और लिखते है
आगे की जानकारी आते ही अपडेट कर दी जायेगी ...
video link
https://youtu.be/EGg08HqS8c4
मै आपका अपना
सुरेन्द्र सिंह भाम्बू
Vpo मालीगांव
जिला झुन्झुनू राजस्थान
9829277798