आज आपके सामने पेश है साहित्य रत्न और काव्यश्री सम्मान प्राप्त देवाराम राम भाम्बू की काव्यमंजरी में प्रकाशित काव्य रचना
आशाओं के दीप
थम गई है दुनिया
फिर तू कहाँ जाता है?
रुक जाना राही
रुक जा
बाहर कोई हवा है,
मारने वाली।
बदल गया है मौसम,
आंधी कोई भयानक आई है।
रुक जा राही रुक जा
बीमारी कोई नई आई है।
बाहर मौत का तांडव है,
उजड़ गये हैं घर,
उजड़ी है मानवता
लेकर अपने संग मौत
कोई बीमारी आई है।
रुत बदल गई.
मास बदल गये,
अपने भी बदल गये।
रुक जा चार दीवारी में
बीमारी कोई आई है।
कुछ दिनों की बात है
फिर आयेगा सावन,
भौरों की गूंज होगी।
कोयल की कूक होगी।
नई आशाओं की किरणे
फिर धरती पर होंगी।
आशाओं के दीप जला दे
छोड़ नफ़रत की दीवारें
ऊसर भूमि में,
बीज प्रेम के डाल दे।
ये दिन संकट के,
बीत जायेंगे।
मौसम खुशगवार होगा
कोरोना दुम दबा भागेगा।
हरियाली होगी,
रिमझिम सावन होगा।
होंगे सपने फिर जीवित,
आशाओं की ओर कदम बढ़ा
निराशा करती निवास श्मशान में,
आशाओं के दीप जला दे,
रुक जा राही रुक जा।
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