आज आपके सामने पेश है साहित्य रत्न और काव्यश्री सम्मान प्राप्त देवाराम राम भाम्बू की स्वर्णिम दर्पण पत्रिका में प्रकाशित काव्य रचना
सब दिन होत ना एक समान
सब दिन होत ना एक समान ।
हरा-भरा और फूलों से लदा
डाली ओस रस बरस रही
फूल से फूल पर उड़ते भौंरे
पतझड़ में पत्तियां बूँद को तरस रही।
सब दिन होत न एक समान 1
सावन का महीना
झूले और राग मल्हार
टप-टप बरसे पत्ते
और रिमझिम बौछार |
सब दिन होत ना एक समान । - 2
भौंरे उड़ - उड़ आये
ले सुगन्ध मधुर
चक्कर चारों ओर लगाये ।
खुशियाँ भरी अपार
उड़े और आये
लगी है योवन की आश
बैठ कली पर गीत गाये ।
आज उम्मीद हुईं हैं जवान
सब दिन होत ना एक समान ।2।।
रोज दो ही बाद
कली खिली बना फूल
डाली-डाली भौंरे नाचे
नष्ट हुए सब शूल ।
मधुर मकरंद मे डूबे
भौंरे हुए जवान
फैली सुगन्ध, रूप रंग सुन्दर
फूल हुए जवान ।
हैं योवन पूर्ण
भ्रमर प्रहरी दिन-रात
फूल ही दुनिया
सब भूले आज ।
नष्ट योवन मिट गया सम्मान
सब दिन होत ना एक समान ।3।।
जब फूल है मुरझाया
जीवन रस खो चुके
भौंरे पलायन कर चुके ।
भटक गया सबका ध्यान
सब दिन होत ना एक समान ||4|
रचनाकार :-
देवाराम भॉमू
जाखली, मकराना
जिला नागौर
राजस्थान
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